गंगा की पूजा का अर्थ केवल घंटा बजाना नहीं, वरन उसकी सफाई है "
अजय कुमार श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट/मां गंगा सहित अन्य गंगा की सहायक नदियों में लोग अपने घर की बासी पूजा सामग्री, साड़ियां / कपड़े और शीशे की तस्वीरें भी डाल देते हैं। यह गंगा की पूजा है या उस पर अत्याचार ? वस्तुतः नदी की पूजा का अर्थ केवल घंटा बजाना नहीं, वरन उसकी सफाई है । यह प्रयास ही नदी की वास्तविक पूजा है । रविवार को गंगा में गंदगी न करने के लिए जागरूक करते हुए गंगा सेवक नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला ने दशाश्वमेध घाट पर स्वच्छता की अलख जगाई । गंगा किनारे से प्रदूषित सामग्रियों को निकाल कर कूड़ेदान तक पहुंचाया। पर्यावरण शुद्धि के लिए गंगा तट पर हवन किया गया । लाउडस्पीकर से गंगाष्टकम व द्वादश ज्योतिर्लिंगों का उच्चारण कर लोगों को स्वच्छता की सीख देते हुए राजेश शुक्ला ने कहा कि गंगा भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड व सनातनी अध्यात्म का सार हैं। हमें गंगा को सहेजना होगा । गंगा स्वयं में एक संस्कार हैं इसे मैला न करें । 50 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका केवल गंगा के जल पर निर्भर है । 25 करोड़ लोग तो पूर्ण रूप से गंगाजल पर आश्रित हैं । गंगा आस्था ही नहीं आजीविका हैं । गंगा केवल जल का ही नहीं, बल्कि जीवन का भी स्रोत है । हमारे लिए गंगा नदी की तरह नहीं, बल्कि एक जागृत स्वरूप हैं । आइए , मां गंगा के आंचल को कचरे से बचाएं । गंगा का संरक्षण करें ।